सच्चाई यही हे की मीरा बाईं ने जब पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी का सत्संग सुुुुना तो उनसे नाम दीक्ष्षा् लेेेेेकर आजीवन उनकी भक्त्ति की ।, जिस श्री कृष्ण जी के मंदिर में मीराबाई पूजा करने जाती थी, उसके मार्ग ।
में एक छोटा बगीचा था। उसमें कुछ घनी छाया वाले वृक्ष भी थे। उस बगीचे में
परमेश्वर कबीर जी तथा संत रविदास जी सत्संग कर रहे थे। सुबह के लगभग 10
बजे का समय था। मीरा जी ने देखा कि यहाँ परमात्मा की चर्चा या कथा चल रही
है। कुछ देर सुनकर चलते हैं।
परमेश्वर कबीर जी ने सत्संग में संक्षिप्त सृष्टि रचना का ज्ञान सुनाया। कहा
कि श्री कृष्ण जी यानि श्री विष्णु जी से ऊपर अन्य सर्वशक्तिमान परमात्मा है।
जन्म-मरण समाप्त नहीं हुआ तो भक्ति करना न करना समान है। जन्म-मरण तो
श्री कृष्ण जी (श्री विष्णु) का भी समाप्त नहीं है। उसके पुजारियों का कैसे होगा।
जैसे हिन्दू संतजन कहते हैं कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण अर्थात् श्री विष्णु जी ने
अर्जुन को बताया। गीता ज्ञानदाता गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक
5, अध्याय 10 श्लोक 2 में स्पष्ट कर रहा है कि हे अर्जुन! तेरे और मेरे बहुत जन्म
हो चुके हैं। तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ। इससे स्वसिद्ध है कि श्री कृष्ण जी का
भी जन्म-मरण समाप्त नहीं है। यह अविनाशी नहीं है। इसीलिए गीता अध्याय 18
श्लोक 62 में गीता बोलने वाले ने कहा है कि हे भारत! तू सर्वभाव से उस परमेश्वर
की शरण में जा। उस परमेश्वर की कृपा से ही तू सनातन परम धाम को तथा
परम शांति को प्राप्त होगा।
परमेश्वर कबीर जी के मुख कमल से ये वचन सुनकर परमात्मा के लिए
भटक रही आत्मा को नई रोशनी मिली। सत्संग के उपरांत मीराबाई जी ने प्रश्न
किया कि हे महात्मा जी! आपकी आज्ञा हो तो शंका का समाधान करवाऊँ। कबीर
जी ने कहा कि प्रश्न करो बहन जी!
प्रश्न :- हे महात्मा जी! आज तक मैनें किसी से नहीं सुना कि श्री कृष्ण जी
से ऊपर भी कोई परमात्मा है। आज आपके मुख से सुनकर मैं दोराहे पर खड़ी हो
गई हूँ। मैं मानती हूँ कि संत झूठ नहीं बोलते। परमेश्वर कबीर जी ने कहा कि
आपके धार्मिक अज्ञानी गुरूओं का दोष है जिन्हें स्वयं ज्ञान नहीं कि आपके सद्ग्रन्थ
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